अल्लामा इक़बाल की शायरी हिन्दी मे | 299+ BEST Allama Iqbal Shayari in Hindi

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=> 01 - टॉप Allama Iqbal Shayari in Hindi With Images


तिरे इश्क़ की ''इंतिहा'' चाहता हूँ

मिरी ''सादगी'' देख क्या चाहता हूँ

ये जन्नत "मुबारक" रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का सामना चाहता हूँ


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हम से पहले था ''अजब'' तेरे जहाँ का मंज़र

कहीं मसजूद थे पत्थर कहीं_माबूद शजर

खूगर ए पैकर ए महसूस थी इंसां की नज़र

मानता फिर कोई #अनदेखे ख़ुदा को क्योंकर

तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तेरा

कुव्वत ए बाज़ू ए #मुस्लिम ने किया काम तेरा


*


चिंगारी आजादी की 'सुलगती' मेरे जश्न में है। 

इंकलाब की ज्वालाएं लिपटी मेरे_बदन में है। 

मौत जहां #जन्नत हो यह बात मेरे वतन में है। 

कुर्बानी का जज्बा ''जिंदा'' मेरे कफन में है।


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हर मुसलमाँ #रग-ए-बातिल के लिए नश्तर था 

उस के ''आईना-ए-हस्ती'' में अमल जौहर था 

जो भरोसा था उसे #क़ुव्वत-ए-बाज़ू पर था 

है तुम्हें_मौत का डर उस को ख़ुदा का डर था 

बाप का इल्म न बेटे को अगर #अज़बर हो 

फिर पिसर ''क़ाबिल-ए-मीरास-ए-पिदर'' क्यूँकर हो 



ढूँडता ''फिरता'' हूँ मैं ‘इक़बाल’ अपने आप को

आप ही गोया "मुसाफ़िर" आप ही मंज़िल हूँ मैं


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बड़े इसरार #पोशीदा हैं इस तन्हाई ''पसंदी'' में .

ये न समझो कि ''दीवाने'' जहनदीदा नहीं होते .

#ताजुब क्या अगर इक़बाल इस_दुनिया तुझ से नाखुश है

सारे लोग ''दुनिया'' में पसंददीदा नहीं होते .


*


ज़िंदगानी की #हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ

जू-ए-शीर ओ तेशा ओ ''संग-ए-गिराँ'' है ज़िंदगी


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इश्क़ भी हो ''हिजाब'' में हुस्न भी हो #हिजाब में,

या तो ख़ुद ''आश्कार'' हो या मुझे आश्कार कर।



इश्क़ भी हो ''हिजाब'' में हुस्न भी हो #हिजाब में,

या तो ख़ुद ''आश्कार'' हो या मुझे आश्कार कर।


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जिस खेत से ''दहक़ाँ'' को मयस्सर नहीं रोज़ी

उस खेत के हर ''ख़ोशा-ए-गंदुम'' को जला कर रख दो


=> 02 - Allama Iqbal Shayari Lyrics


मस्जिद तो ''बना'' दी शब भर में ईमाँ की #हरारत वालों ने

मन अपना_पुराना पापी है बरसों में #नमाज़ी बन न सका


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दिल से जो बात-निकलती है वोअसर #रखती है

लेकिन नहीं ''ताक़त-ए-परवाज़'' मगर रखती है


*


खुदी को कर ''बुलंद'' इतना कि हर #तकदीर से पहले 

खुदा बंदे से खुद पूछे_बता तेरी रजा क्या है 


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खुदी को कर ''बुलंद'' इतना कि हर #तकदीर से पहले 

खुदा बंदे से खुद पूछे_बता तेरी रजा क्या है 



यक़ीं मोहकम अमल ''पैहम'' मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम "जिहाद-ए-ज़िंदगानी'' में हैं ये ''मर्दों'' की शमशीरें


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कितनी अजीब है #गुनाहों की जुस्तजू_इकबाल

नमाज भी ''जल्दी'' में पड़ता है फिर से #गुनाह करने के लिए


*


रहमत है ''दिल'' के साथ रहे #पासबान-ए-अक़्ल

लेकिन कभी #कभी तो इसे ''तन्हा'' भी छोड़ दे


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कभी ऐ #हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ #लिबास-ए-मजाज़ में

कि हज़ारों सज्दे_तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में



ताही #ज़िंदगी से नहीं हैं ये फिज़ाएँ

यहाँ सैंकड़ों ''कारवाँ'' अभी और भी हैं


-


साकी की #मुहब्बत में दिल साफ_हुआ इतना

जब सर को झुकाता हूं #शीशा नजर आता है


=> 03 - Allama Iqbal Shayari On Namaz


दुश्मन के #इरादों को है ज़ाहिर अगर_करना

तुम खेल वही खेलो #अंदाज़ बदल डालो..!


-


हरम-ए-पाक भी #अल्लाह भी क़ुरआन भी एक

कुछ बड़ी बात थी होते जो "मुसलमान" भी एक


*


#जानते हो तुम भी फिर भी #अजनान बनते हो

इस तरह हमें ''परेशान'' करते हो

पूछते हो 'तुम्हे' किया पसंद है

जवाब खुद हो फिर भी #सवाल करते हो


-


मिटा दे अपनी #हस्ती को गर कुछ #मर्तबा* चाहिए

कि दाना खाक में मिलकर, "गुले-गुलजार" होता है



अपने 'मन' में डूब कर पा जा #सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी

तू अगर मेरा नहीं ''बनता'' न बन अपना तो बन


-


बात #सझ्दों कि नहीं खुलूस दिल कि होती है #इकबाल

हर 'मयखाने' में सराबी और हर #मस्जिद में कोई ''नमाजी'' नहीं होता


*


ज़मीर 'जाग' ही जाता है अगर ज़िन्दा हो #इक़बाल,

कभी गुनाह से #पहले तो कभी गुनाह के बाद।


-


ढूंढता रहता हूं ऐ ''इकबाल'' अपने आप को.

आप ही गोया 'मुसाफिर' आप ही #मंजिल हूं मैं



अमल से #ज़िन्दगी बनती है, ''जन्नत'' भी, जहन्नम भी,

ये खाकी अपनी #फितरत में, न नूरी है न नारी है.


-


दुआ तो ''दिल'' से मांगी जाती है, जुबां से नहीं ऐ #इक़्बाल,

क़ुबूल #तोह उसकी भी होती है जिसकी_जुबां नहीं होती.


=> 04 - अल्लामा इक़बाल की शायरी उर्दू में


''मुमकिन'' है कि तू जिसको_समझता है बहारां

औरों की निगाहों में वो "मौसम" हो खिजां का


-


खुदा के 'बन्दे' तो हैं हजारों बनो में फिरते हैं #मारे-मारे

मैं उसका ''बन्दा'' बनूंगा जिसको खुदा के #बन्दों से प्यार होगा


*


नहीं इस खुली_फ़ज़ा में कोई #गोशा-ए-फ़राग़त

ये जहाँ अजब जहाँ है न ''क़फ़स'' न आशियाना


-


सारे जहाँ से अच्छा,# हिन्दोस्ताँ हमारा

हम "बुलबुलें" हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा



तू शाहीं है #परवाज़ है काम तेरा 

तिरे सामने ''आसमाँ'' और भी हैं 


-


तू क़ादिर ओ #आदिल है मगर तेरे जहाँ में

हैं तल्ख़ बहुत "बंदा-ए-मज़दूर" के औक़ात


*


नहीं तेरा ''नशेमन'' क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर

तू शाहीं है बसेरा कर_पहाड़ों की चटानों में


-


तेरी ''बन्दा'' परवारी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं

न गिला है #दोस्तों का ,

न #शिकायत-ऐ-ज़माना…!



#रुलाया ना कर हर बात पर ए 

जिंदगी ज़रुरी नहीं सब की "किस्मत" में

चुप #करवाने वाले हो 


-


जमीर_जाग ही जाता है

अगर दिल #जिंदा हो तो..

कभी ''गुनाह'' से पहले

कभी गुनाह के बाद..


=> 05 - अल्लामा इकबाल की गजल


महीने-वस्ल के घड़ियों की 'सूरत' उड़ते जाते हैं

मगर घड़ियाँ #जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में


-


हम जब_निभाते है तो इस तरह ''निभाते'' है

सांस लेना तो #छोड़ सकते है पर दमन_यार नहीं


*


अल्लामा "इक़बाल" रह० ने 'फरमाया' था:-

की मोहम्मद से #वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं

ये जहाँ चीज़ है क्या "लौह-ओ-क़लम" तेरे हैं


-


ख़ुदी वो ''बहर'' है जिस का कोई किनारा नहीं

तू आबजू इसे समझा_अगर तो चारा नहीं



अपने मन में #डूबकर पा जा सुराग_जिंदगी 

तू अगर मेरा नहीं #बनता ना बन अपना तो बन


-


अगर #हंगामा-हा-ए-शौक़ से है "ला-मकाँ" ख़ाली ख़ता किस की है या रब #ला-मकाँ तेरा है या मेरा


*


#वक़्त-ए-फ़ुर्सत है कहाँ काम अभी_बाक़ी है

नूर-ए-तौहीद का ''इत्माम'' अभी बाक़ी है


-


नशा ''पिला'' के गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो तब है कि "गिरतों" को थाम ले साक़ी



#फ़िर्क़ा-बंदी है कहीं और कहीं ज़ातें हैं

क्या ज़माने में "पनपने" की यही बातें हैं


-


मिटा दे अपनी_हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए

कि दाना खाक में मिलकर, #गुले-गुलजार होता है


=> 06 - इकबाल के तराने


जानते हो #तुम भी फिर भी ''अजनान'' बनते हो

इस तरह हमें "परेशान'' करते हो.

पूछते हो #तुम्हे किया पसंद है

जवाब खुद हो फिर भी "सवाल" करते हो..


-


कभी ''छोड़ी'' हुई मंज़िल भी याद_आती है राही को

खटक सी है जो सीने में #ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए


*


#सितारों से आगे जहाँ और भी हैं

अभी इश्क़ के "इम्तिहाँ" और भी हैं

तही ''ज़िंदगी'' से नहीं ये फ़ज़ाएँ

यहाँ सैकड़ों #कारवाँ और भी हैं


-


आईन-ए-जवाँ-मर्दां #हक़-गोई ओ बे-बाकी

अल्लाह के ''शेरों'' को आती नहीं रूबाही


^


बाग़-ए-बहिश्त से मुझे_हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ

कार-ए-जहाँ #दराज़ है अब मिरा #इंतिज़ार कर


-


तू ने ये क्या_ग़ज़ब किया मुझ को भी #फ़ाश कर दिया

मैं ही तो एक #राज़ था सीना-ए-काएनात में


*


अनोखी_वज़्अ’ है सारे ज़माने से ''निराले'' हैं

ये आशिक़ कौन सी #बस्ती के या-रब रहने वाले हैं


-


इश्क_कातिल से भी #मकबूल से हमदर्दी भी 

यह बता किससे ''मोहब्बत'' की जजा मांगेगा


^


कौन_रखेगा  याद हमें इस दौर ए #खुदगर्जी में,

हालत ऐसी है की ''लोगों'' को खुदा याद नहीं


-


मैं रो रो के ''कहने'' लगा दर्द-ए-दिल,

वो मुंह फेर कर #मुस्कुराने लगे।


=> 07 - डॉक्टर इकबाल


किसी की ''याद'' ने

जख्मों से भर दिया है #सीना

अब हर एक_सांस पर शक है के #आखरी होगी….!


-


ये जन्नत_मुबारक रहे ज़ाहिदों को

कि मैं आप का #सामना चाहता हूँ


*


#ग़ुलामी में न काम आती हैं "शमशीरें" न तदबीरें

जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं #पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें


-


नहीं तेरा ''नशेमनं'' कसर्-ए-शुलतानी के

गुम्बद पर,

तू #शाहीन बसेर कर पहाडों की ''चट्टानो''

में!!


^


न रख ''उम्मीद-इ-वफ़ा'' किसी परिंदे से इकबाल,

जब पर निकल आते है तोह अपना "आशियाना" भूल जाते हैं.


-


दिल से जो ''बात'' निकलती है असर_रखती है

पर नहीं ताक़त -ए -परवाज़ मगर रखती है


*


हमने "तन्हाई" को अपना बना रक्खा 

राख के ढ़ेर ने #शोलो को दबा रक्खा है 


-


और भी कर देता है ''दर्द'' में इज़ाफ़ा

तेरे 'होते' हुए गैरों का "दिलासा" देना


^


आँख जो कुछ_देखती है लब पे आ #सकता नहीं

महव-ए-हैरत हूँ कि ''दुनिया'' क्या से क्या हो जाएगी…


-


माना कि तेरी_दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मिरा_इंतज़ार देख


=> 08 - करदे फकत इशारा अगर शाहे खुरासान सजदा न करूं हिंद की नापाक जमीन पर


मुझे #इश्क के पर लगा कर उड़ा 

मेरी खाक ''जुगनू'' बना के उड़ा 


-


तेरे आज़ाद_बंदों की न ये दुनिया न वो #दुनिया

यहाँ मरने की ''पाबंदी'' वहाँ जीने की पाबंदी


*


दुनिया की #महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,

क्या लुत्फ़ #अंजुमन का जब "दिल" ही बुझ गया हो।


-


तेरे इश्क़ की #इन्तहा चाहता हूँ मेरी सादगी 'देख' क्या चाहता हूँ

भरी बज़्म में #राज़ की बात कह दी बड़ा_बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ


^


#बातिल से दबने वाले ऐ 'आसमाँ' नहीं हम

सौ बार कर चुका है तू #इम्तिहाँ हमारा


-


दिल की #बस्ती अजीब बस्ती है,

लूटने वाले को_तरसती है।


*


फ़क़त #निगाह से होता है "फ़ैसला" दिल का

न हो निगाह में #शोख़ी तो दिलबरी क्या है


-


औकात' में रखना था जिसे 

गलती से दिल में #रखा था उसे 


^


बे-ख़तर_कूद पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़

अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी


-


फूलों की "पत्तियों" से कट सकता है 'हीरे' का जिगर

मर्दे नादान पर #कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर


=> 09 - न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए


हज़ारों साल_नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है,

बड़ी मुश्किल से होता है, #चमन में दीदावर पैदा.


-


दुनिया की "महफ़िलों" से उकता गया हूँ या रब,

क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब_दिल ही बुझ गया हो।


*


बे-ख़तर ''कूद'' पड़ा आतिश-ए-नमरूद में इश्क़

अक़्ल है महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम अभी


-


इक़रार ऐ #मुहब्बत ऐहदे ऐ-वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं #इक़बाल.

हर शख्स खुदी की "मस्ती" में बस अपने खातिर जीता है


^


मिटा दे अपनी हस्ती को गर कुछ मर्तबा* चाहिए

कि दाना खाक में मिलकर, गुले-गुलजार होता है


-


साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना

जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है


*


सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा


-


फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का

न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है


^


दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूं या रब

क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो


-


हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा


=> 10 - अल्लामा इक़बाल रेख़्ता


माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतज़ार देख


-


मिरी निगाह में वो रिंद ही नहीं साक़ी

जो होशियारी ओ मस्ती में इम्तियाज़ करे


*


हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही

क्या चाँद तारे क्या मुर्ग़ ओ माही


-


मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से

कि जिन को डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में


^


अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली

ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा


-


निगाह-ए-इश्क़ दिल-ए-ज़िंदा की तलाश में है

शिकार-ए-मुर्दा सज़ा-वार-ए-शाहबाज़ नहीं


*


तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू

या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर


-


उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं

कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए


^


सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है

ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे


-


मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं

उन्हीं का काम है ये जिन के हौसले हैं ज़ियाद


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