मिर्ज़ा गालिब की शायरी हिन्दी मे | 199+ BEST Mirza Ghalib Shayari in Hindi
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=> 01 - टॉप Mirza Ghalib Shayari in Hindi With Images
मोहब्बत में नही फर्क जीने और मरने का
उसी को देखकर जीते है जिस ‘काफ़िर’ पे दम निकले!
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।
*
ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।
ये ना थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।।
बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है
आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
*
बेवजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते है जिस काफ़िर पे दम निकले।।
=> 02 - Mirza Ghalib Shayari On Love
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
*
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे
चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श हो हो कर पाए माल भी
मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं
इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर
*
चाँद मत मांग मेरे चाँद जमीं पर रहकर
खुद को पहचान मेरी जान खुदी में रहकर
ना जाने किस रैन बसेरो की तलाश है इस चाँद को
रात भर बिना कम्बल भटकता रहता है इन सर्द रातो मे
बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद
-
बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर
पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर
=> 03 - मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर हिंदी मै
खूबसूरत गज़ल जैसा है तेरा चाँद सा चेहरा
निगाहे शेर पढ़ती हैं तो लब इरशाद करते है
-
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
*
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत है
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते है
-
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब‘
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
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हम जो सबका दिल रखते है
सुनो, हम भी एक दिल रखते है
*
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
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पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है
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नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं
=> 04 - मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन हिंदी पीडीएफ
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते
-
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
*
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए
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हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
-
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते
*
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
-
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
-
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
=> 05 - मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन उर्दू
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
-
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
*
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
-
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'।
शर्म तुम को मगर नहीं आती
-
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
*
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ
वर्ना क्या बात करनी नहीं आती
-
हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में
-
हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ
जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा
=> 06 - ग़ालिब की शायरी हिंदी में Motivation
जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ
जब कमान देखी अपनों के हाथ में
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जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत की रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-इ-जानन किये हुए
*
हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी
कुछ हमारी खबर नहीं आती
-
मरते हैं आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नहीं आती
^
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
-
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
*
हम तो फना हो गए उसकी आंखे देखकर गालिब
न जाने वो आइना कैसे देखते होंगे
-
ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ
क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में
^
है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था
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ज़िन्दगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िन्दगी देकर।
=> 07 - मिर्जा गालिब दर्द शायरी इन हिंदी
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
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हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब यह ख्याल अच्छा है
*
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़।
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।।
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काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'।
शर्म तुम को मगर नहीं आती।।
^
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है।
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।।
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इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'।
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे।।
*
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना।
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।।
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दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।
^
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।
-
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक।
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।।
=> 08 - ग़ालिब की शायरी हिंदी में Love
क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।
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क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।
*
कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।
-
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
^
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे।
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।
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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।
*
दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।
-
हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।
^
नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।
-
रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।
=> 09 - मिर्जा गालिब की दर्द भरी गजलें
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार।
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है।।
-
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल।
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।।
*
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।
-
न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा।
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है।।
^
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है।
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।।
-
तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना।
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता।।
*
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन।
दिल के खुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़्याल अच्छा है।।
-
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'।
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था।।
^
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को।
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।।
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना।
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।।
=> 10 - मिर्ज़ा ग़ालिब लव स्टोरी
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे।
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।।
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यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं।
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।।
*
हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है।
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।।
^
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़।
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।
-
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं।।
*
वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं।
कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं।
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निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन।
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।।
^
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइज़।
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।।
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तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें।
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं।।
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