तहज़ीब हाफ़ी की शायरी हिन्दी मे | 99+ BEST Tahzeeb Hafi Shayari in Hindi
Tahzeeb Hafi Shayari in Hindi - Read Best Deep Meaning Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi, तहज़ीब हाफ़ी की नज़्म, तहज़ीब हाफ़ी ग़ज़ल, तहज़ीब हाफ़ी विकिपीडिया, ये मैंने कब कहा की मेरे हक़ में फैसला करें, तहजीब हाफी शायरी रेख़्ता, अच्छा ठीक है तहज़ीब हाफ़ी, तुझको पाने में मसला ये है, Tehzeeb Hafi Shayari Lyrics And Share On Your Social Media Like Facebook, WhatsApp And Instagram.
=> 01 - टॉप Tahzeeb Hafi Shayari in Hindi With Images
सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है मै चाहता हूँ शाम ढले और दीया जले।
हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है।
*
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खिलता वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है।
तू ने क्या क़िन्दील जला दी शहज़ादी सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी।
तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले।
तारीकियों को आग लगे और दीया जले ये रात बैन करती रहे और दीया जले।
*
अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता।
तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता।
ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ।
क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।
=> 02 - Deep Meaning Tehzeeb Hafi Shayari in Hindi
तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
*
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया।
दोस्त किसको पता है कि वक़्त उसकी आँखों से फिर किस तरह पेश आया हम इकट्ठे थे हंसते थे रोते थे एक दूसरे को बड़ा दखते थे।
*
सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे।
जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे सिर्फ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे।
लड़किया इश्क़ में कितनी पागल होती है, फ़ोन आया और चूल्हा जलता छोड़ दिया।
-
अपना लड़ना भी मोहोब्बत है तुम्हे इल्म नहीं, चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।
=> 03 - तहज़ीब हाफ़ी की नज़्म
बाद में मुझसे न कहना घर पलटना ठीक है, वैसे सुनने में यही आया है रास्ता ठीक है।
-
इतना मीठा था वो गुस्सा भरा लहज़ा मत पूछ, उसने जिस जिस को भी जाने को कहा वो बैठ गया।
*
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर ‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो।
-
वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता।
मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो।
-
आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है।
*
मल्लाहों का ध्यान बटाकर दरिया चोरी कर लेना है, क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है।
-
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया।
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।
-
मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊं तो उनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा।
=> 04 - तहज़ीब हाफ़ी ग़ज़ल
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
-
तुम्हें पता तो चले बेजबान चीज का दुःख मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा।
*
फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा।
-
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?
-
हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है
अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है।
*
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुन्दरों से अकेले में बात करनी है।
-
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खिलता
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है।
किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है।
-
न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है
कि उस से हम ने तुझे देखने की करनी है।
=> 05 - तहज़ीब हाफ़ी विकिपीडिया
मैं तेरे दुश्मन लश्कर का शहज़ादा
कैसे मुमकिन है ये शादी शहज़ादी
-
तेरे ही कहने पर एक सिपाही ने
अपने घर को आग लगा दी शहज़ादी
*
अब तो ख़्वाब-कदे से बाहर पाँव रख
लौट गए हैं सब फ़रियादी शहज़ादी
-
शीश-महल को साफ़ किया तिरे कहने पर
आइनों से गर्द हटा दी शहज़ादी
तू ने क्या क़िन्दील जला दी शहज़ादी
सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी
-
तुमको दूर से देखते देखते गुज़र रही है
मर जाना पर किसी गरीब के काम न आना।
*
धूप पड़े उस पर तो तुम बादल बन जाना
अब वो मिलने आये तो उसको घर ठहराना।
-
सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है
मै चाहता हूँ शाम ढले और दीया जले।
क्या मुझसे भी अज़ीज़ है तुमको दीए की लौ
फिर तो मेरा मज़ार बने और दीया जले।
-
तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ
यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले।
=> 06 - ये मैंने कब कहा की मेरे हक़ में फैसला करें
उसकी जबान में इतना असर है कि निशब्द
वो रौशनी की बात करे और दीया जले।
-
तारीकियों को आग लगे और दीया जले
ये रात बैन करती रहे और दीया जले।
*
तुझे ये सड़के मेरे तवस्सुत से जानती हैं
तुझे हमेशा ये सब इशारे खुले मिलेंगे
-
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम ऐसे बुजदिल भी पहले सफ में खड़े मिलेगे।
^
उसी जगह पर जहाँ कई रास्ते मिलेंगे
पलट के आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे।
-
अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है
अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता।
*
मैं अपने ख्वाब पूरे कर के खुश हूँ पर ये पछतावा नही जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता।
-
तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता।
^
वो झांकता नहीं खिड़की से दिन निकलता है
तुझे यकीन नहीं आ रहा तो आ मेरे साथ।
-
यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ।
=> 07 - तहजीब हाफी शायरी रेख़्ता
यही कहीं हमें रस्तों ने बद्दुआ दी थी
मगर मैं भुल गया और कौन था मेरे साथ।
-
अब वो मेरे ही किसी दोस्त की मनकूहा है
मै पलट जाता मगर पीछे बचा कुछ नहीं था।
*
ये भी सच है मुझे कभी उसने कुछ ना कहा
ये भी सच है कि उस औरत से छुपा कुछ नहीं था।
-
क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं
वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।
^
ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।
-
बुरे मौसम की कोई हद नहीं तहजीब हाफी
फिजा आई है और पिंजरों में पर मुरझा रहे हैं।
*
हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।
-
हजारों लोग उसको चाहते होंगे हमें क्या
के हम उस गीत में से अपना हिस्सा गा रहे हैं।
^
हमे मिलना तो इन आबादियों से दूर मिलना
उससे कहना गए वक्तू में हम दरिया रहे हैं।
-
अब उस जानिब से इस कसरत से तोहफे आ रहे हैं
के घर में हम नई अलमारियाँ बनवा रहे हैं।
=> 08 - अच्छा ठीक है तहज़ीब हाफ़ी
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
-
उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है
मिल जाए तो बात वगैरा करती है।
*
मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ।
-
मेरे खिलाफ दुश्मनों की सफ़ में है वो और मैं
बहुत बुरा लगूँगा उस पर तीर खींचता हुआ।
^
एक और शख़्स छोड़कर चला गया तो क्या हुआ
हमारे साथ कौन सा ये पहली मर्तबा हुआ।
-
तू निशाने पे आ भी जाए अगर
कौन सा तीर मार लूँगा मैं।
*
रात भी तो गुजार ली मैंने
जिन्दगी भी गुजार लूंगा मैं।
-
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं
पेड़ का रूप धार लूँगा मैं।
^
बस कानों पर हाथ रख लेते थोड़ी देर
और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिया।
-
तुम क्या जानो उस दरिया पे क्या गुजरी
तुमने तो बस पानी भरना छोड़ दिया।
=> 09 - तुझको पाने में मसला ये है
लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं
फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया।
-
थोड़ा लिखा और ज़्यादा छोड़ दिया
आने वालों के लिए रास्ता छोड़ दिया।
*
उस लड़ाई में दोनों तरफ कुछ सिपाही थे जो नींद में बोलते थे
जंग टलती नहीं थी सिरों से मगर ख्वाब में फ़ाख्ता देखते थे
-
सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता
शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे।
^
सच बताएं तो तेरी मोहब्बत ने खुद पर तवज्जो दिलाई हमारी
तू हमें चूमता था तो घर जाकर हम देर तक आईना देखते थे।
-
तब हमें अपने पुरखों से विरसे में आई हुई बद्दुआ याद आई
जब कभी अपनी आंखों के आगे तुझे शहर जाता हुआ देखते थे
*
जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे
सिर्फ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे।
-
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो।
^
एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर
‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो।
-
अब इतनी देर भी ना लगा, ये हो ना कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो।
=> 10 - Tehzeeb Hafi Shayari Lyrics
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो,
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो।
-
मेरे ख़ाक उड़ाने पर पाबन्दी आयत करने वालों
मैंने कौन सा आपके शहर का रास्ता चोरी कर लेना है।
*
आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ
लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है।
-
आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ
लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है।
^
मल्लाहों का ध्यान बटाकर दरिया चोरी कर लेना है,
क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है।
-
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
*
बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ
दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया
-
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया
^
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
-
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
Recommended Posts :
Thanks For Read तहज़ीब हाफ़ी की शायरी हिन्दी मे | 99+ BEST Tahzeeb Hafi Shayari in Hindi. Please Check New Updates On Shayari777 Blog For Get Fresh New Hindi Shayari, English Shayari, Love Shayari, Sad Shayari, Motivational Shayari, Attitude Shayari And All Type Shayari Poetry.
No comments:
Post a Comment