ज़ाकिर खान शायरी हिन्दी मे | 99+ BEST Zakir Khan Shayari in Hindi
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=> 01 - टॉप Zakir Khan Shayari in Hindi With Images
ये सब कुछ जो भूल गयी थी तुम,
या शायद जान कर छोड़ा था तुमने,
अपनी जान से भी ज्यादा,
संभाल रखा है मैंने सब,
जब आओग तो ले जाना..
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ में,
ज़िन्दगी , कितने धीरे चला हूँ मैं…
और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे,
उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं….
*
वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी
मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।
अब कोई हक़ से हाथ पकड़कर महफ़िल में दोबारा नहीं बैठाता,
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुकसान हुआ करते है..
बेवजह बेवफाओं को याद किया है,
गलत लोगो पर बहुत बर्बाद किया है.
यूँ तो भूले है हमे लोग कई,
पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उनमे से याद नहीं आया..
*
माना कि तुम को भी इश्क़ का तजुर्बा काम नहीं,
हमनें भी तो बगों में हैं कई तितलियां उड़ाई।
बे वजह बेवफाओं को याद किया है,
ग़लत लोगों पे बहुत वक़्त बर्बाद किया है।
दिलों की बात करता है ज़माना,
पर आज भी मोहब्बत
चेहरे से ही शुरू होती हैं।
बड़ी कश्मकश में है ये जिंदगी की,
तेरा मिलना मिलना इश्क़ था या फरेब।
=> 02 - ज़ाकिर खान शायरी हिन्दी
तुम भी कमाल करते हों ,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो।
ये तो परिंदों की मासूमियत है,
वरना दूसरों के घर अब आता जाता कौन हैं।
*
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी सी फर्माइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफसील से मिलने की ख्वाइश है ।
इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।
गर यकीन ना हों तो बिछड़ कर देख लो
तुम मिलोगे सबसे मगर हमारी ही तलाश में।
मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा ज़िक्र ही कहां था , मेरी दास्तान से पहले।
*
मेरी अपनी और उसकी आरज़ू में फर्क ये था
मुझे बस वो...
और उसे सारा जमाना चाहिए था।
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई।
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
-
मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
=> 03 - ज़ाकिर खान शायरी लिरिक्स
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
-
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
*
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
-
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
-
मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
*
अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ…
एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…
-
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्ने पर,
आप उसे किताबो में डालकर मुश्किल न कीजिये..
उसे मैं क्या, मेरा खुमार भी मिले तो बेरहमी से तोड़ देती है,
वो ख्वाब में आती है मेरे, फिर आकर मुझे छोड़ देती है….
-
हम दोनों में बस इतना सा फर्क है,
उसके सब “लेकिन” मेरे नाम से शुरू होते है
और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते है..
=> 04 - ज़ाकिर खान शायरी ऑन माँ
बस का इंतज़ार करते हुए,
मेट्रो में खड़े खड़े
रिक्शा में बैठे हुए
गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो?
गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो?
क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी?
घर नहीं जा पाए न इस बार भी?
-
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी से फरमाइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफ्सील से मलने क ख्वाइश है..
*
कामयाबी हमने तेरे लिए खुद को यूँ तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया..
-
माना की तुमको इश्क़ का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग़ में हैं कई तितलियाँ उड़ाई..
माना कि तुम को भी इश्क़ का तजुर्बा काम नहीं,
हमनें भी तो बगों में हैं कई तितलियां उड़ाई।
-
बे वजह बेवफाओं को याद किया है,
ग़लत लोगों पे बहुत वक़्त बर्बाद किया है।
*
दिलों की बात करता है ज़माना,
पर आज भी मोहब्बत
चेहरे से ही शुरू होती हैं।
-
बड़ी कश्मकश में है ये जिंदगी की,
तेरा मिलना मिलना इश्क़ था या फरेब।
तुम भी कमाल करते हों ,
उम्मीदें इंसान से लगा कर
शिकवे भगवान से करते हो।
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ये तो परिंदों की मासूमियत है,
वरना दूसरों के घर अब आता जाता कौन हैं।
=> 05 - ज़ाकिर खान शायरी जश्न ए रेखता
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी सी फर्माइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफसील से मिलने की ख्वाइश है ।
-
इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।
*
गर यकीन ना हों तो बिछड़ कर देख लो
तुम मिलोगे सबसे मगर हमारी ही तलाश में।
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मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शोहरत,
तेरा ज़िक्र ही कहां था , मेरी दास्तान से पहले।
मेरी अपनी और उसकी आरज़ू में फर्क ये था
मुझे बस वो...
और उसे सारा जमाना चाहिए था।
-
हर एक दस्तूर से बेवफाई मैंने शिद्दत से हैं निभाई
रास्ते भी खुद हैं ढूंढे और मंजिल भी खुद बनाई।
*
ज़मीन पर आ गिरे जब आसमां से ख़्वाब मेरे
ज़मीन ने पूछा क्या बनने की कोशिश कर रहे थे।
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मेरी औकात मेरे सपनों से इतनी बार हारी हैं के
अब उसने बीच में बोलना ही बंद कर दिया है।
^
इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आख़री पन्ने पर
आप उसे किताबों म डाल कर मुस्किल ना कीजिए।
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मेरे घर से दफ्तर के रास्ते में
तुम्हारी नाम की एक दुकान पढ़ती हैं
विडंबना देखो,
वहां दवाइयां मिला करती है।
=> 06 - ज़ाकिर खान शायरी ऑन फ्रेंडशिप
यूं तो भूले हैं हमें लोग कई, पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उन्मे सें , कभी याद नहीं आया।
-
कामयाबी तेरे लिए हमने खुद को कुछ यूं तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाजार में रख कर एश्तेहार कर लिया ।
*
लूट रहे थे खजाने मां बाप की छाव मे,
हम कुड़ियों के खातिर, घर छोड़ के आ गए।
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मेरी जमीन तुमसे गहरी रही है,
वक़्त आने दो, आसमान भी तुमसे ऊंचा रहेगा।
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ये सब कुछ जो भूल गयी थी तुम,
या शायद जान कर छोड़ा था तुमने,
अपनी जान से भी ज्यादा,
संभाल रखा है मैंने सब,
जब आओग तो ले जाना..
-
अपने आप के भी पीछे खड़ा हूँ में,
ज़िन्दगी , कितने धीरे चला हूँ मैं…
और मुझे जगाने जो और भी हसीं होकर आते थे,
उन् ख़्वाबों को सच समझकर सोया रहा हूँ मैं….
*
वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी
मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी।
-
अब कोई हक़ से हाथ पकड़कर महफ़िल में दोबारा नहीं बैठाता,
सितारों के बीच से सूरज बनने के कुछ अपने ही नुकसान हुआ करते है..
^
बेवजह बेवफाओं को याद किया है,
गलत लोगो पर बहुत बर्बाद किया है.
-
यूँ तो भूले है हमे लोग कई,
पहले भी बहुत से
पर तुम जितना कोई उनमे से याद नहीं आया..
=> 07 - ज़ाकिर खान शायरी मोटिवेशनल
Mera Sab bura bhi kehna,
Par aacha bhi sab batana.
Mai jau duniya se toh sabko
Meri dastaan sunana.
-
Bata dena sabko ki,
mai matlabi bada tha.
Har bade mukaam pe
tanha hi mai khada tha.
*
Koi poche toh bata dena ki
Mai kiss darje ka nakara tha.
Keh dena ki jhoota tha mai,
Batana ki kaise
zarurat par kaam na aa saka.
Wade kiye par nibha na saka.
Intqaam saare poore kiye
par ishq adhura rehne diya.
-
Mera Sab bura bhi kehna,
Par aacha bhi sab batana.
Mai jau duniya se toh sabko
Meri dastaan sunana.
^
हूँ राम का सा तेज मैं
लंकापति सा ज्ञान हूँ
किस की करूं आराधना
सब से जो मैं महान हूँ
ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ
मैं जल-प्रवाह निहार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
-
ज़िन्दगी से कुछ ज्यादा नहीं बास इतनी सी फरमाइश है ,
अब तस्वीर से नहीं, तफ्सील से मिलने की ख्वाइश है…
*
भावनाएं मर चुकीं
संवेदनाएं खत्म हैं
अब दर्द से क्या डरूं
ज़िन्दगी ही ज़ख्म है
मैं बीच रह की मात हूँ
बेजान-स्याह रात हूँ
मैं काली का श्रृंगार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
-
उंच-नीच से परे
मजाल आँख में भरे
मैं लड़ रहा हूँ रात से
मशाल हाथ में लिए
न सूर्य मेरे साथ है
तो क्या नयी ये बात है
वो शाम होता ढल गया
वो रात से था डर गया
मैं जुगनुओं का यार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
^
मैं शून्य पे सवार हूँ
बेअदब सा मैं खुमार हूँ
अब मुश्किलों से क्या डरूं
मैं खुद कहर हज़ार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ
-
Ab Wo Aag Nahi Rahi, Na Sholo Jaisa Dehekta Hoon,
Rang Bhi Sab Ke Jaisa Hai, Sabsa Hi To Mehekta Hoon…
Ek Arse Se Hoon Thhame Kashti Ko Bhavar Mein,
Toofaan Se Bhi Jyada Saahil Se Darta Hoon…
=> 08 - ज़ाकिर खान शायरी ऑन दोस्ती
अब वो आग नहीं रही, न शोलो जैसा दहकता हूँ,
रंग भी सब के जैसा है, सबसे ही तो महेकता हूँ…
एक आरसे से हूँ थामे कश्ती को भवर में,
तूफ़ान से भी ज्यादा साहिल से डरता हूँ…
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Teri Bewafaai ke Angaaro mein lipti rahi hai Rooh meri,
Main iss tarah Aag na hota agar ho jaati tu meri…
Ekk saans se dehek jaata hai shola Dil ka,
Shaayad hawaaon mein faili hai Khushboo teri…
*
तेरी बेवफाई के अंगारो में लिपटी रही हे रूह मेरी,
मैं इस तरह आज न होता जो हो जाती तू मेरी..
एक सांस से दहक जाता है शोला दिल का
शायद हवाओ में फैली है खुशबू तेरी
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इश्क़ को मासूम रहने दो नोटबुक के आखिरी पन्ने पर,
आप उसे किताबो में डालकर मुश्किल न कीजिये..
^
उसे मैं क्या, मेरा खुमार भी मिले तो बेरहमी से तोड़ देती है,
वो ख्वाब में आती है मेरे, फिर आकर मुझे छोड़ देती है….
-
हम दोनों में बस इतना सा फर्क है,
उसके सब “लेकिन” मेरे नाम से शुरू होते है
और मेरे सारे “काश” उस पर आ कर रुकते है..
*
बस का इंतज़ार करते हुए,
मेट्रो में खड़े खड़े
रिक्शा में बैठे हुए
गहरे शुन्य में क्या देखते रहते हो?
गुम्म सा चेहरा लिए क्या सोचते हो?
क्या खोया और क्या पाया का हिसाब नहीं लगा पाए न इस बार भी?
घर नहीं जा पाए न इस बार भी?
-
जिंदगी से कुछ ज्यादा नहीं,
बस इतनी से फरमाइश है,
अब तस्वीर से नहीं,
तफ्सील से मलने क ख्वाइश है..
^
कामयाबी हमने तेरे लिए खुद को यूँ तैयार कर लिया,
मैंने हर जज़्बात बाज़ार में रख कर इश्तेहार कर लिया..
-
माना की तुमको इश्क़ का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग़ में हैं कई तितलियाँ उड़ाई..
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